मध्यप्रदेश में सिंचाई तथा नदी घाटी परियोजना
मध्यप्रदेश में सिंचाई तथा नदी घाटी परियोजना– आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे मध्यप्रदेश में सिंचाई तथा ना नदी घाटी परियोजना के बारे में विस्तृत जानकारी अगर आप जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें और अपना नॉलेज बढ़ाएं।
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण का स्थापना या गठन 1980 में किया गया।
उर्मिल परि योजना उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश की संयुक्त परियोजना बारना परियोजना रायसेन जिले में बाई़ी नगर के समीप राष्ट्रीय राजमार्ग पर बारना नदी पर स्थित है।
सुक्ता परियोजना खण्डवा जिले में खण्डवा से 40 किमी.
सुक्ता नदी पर स्थित है । इससे 18583 हेक्टेयर भूमि पर
सिंचाई होगी ।
मध्यप्रदेश के गोदावरी कछार में बैनगंगा नदी पर निर्माणाधीन अपर बैनगंगा परियोजना को संजय सरोवर योजना भी कहा जाता है।
बाण सागर परियोजना के जल वितरण में मध्यप्रदेश का हिस्सा 2,46,689 हेक्टेयर Meater का है ।
मध्यप्रदेश की केन-बेतवा लिंक परियोजना से प्रदेश की 4.90 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई हो सकेगी ।
केन,बेतवा नदी लिंक परियोजना मध्यप्रदेश के पन्ना राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरेगी, जिसे पर्यावरण क्रांति के रूप में देखा जा सकता है ।
थॉवर परियोजना मण्डला जिले के झुलपुर गाँव के निकट
थॉवर नदी पर स्थित है । इसका निर्माण कार्य 1977 में
प्रारंभ हुआ था ।
माही परियोजना धार में माही नदी पर निर्मित है। जिस पर
दो बाँध तथा दो नहरें निर्मित की जानी हैं।
महू (इंदौर) तहसील में निर्मित की जा रही चोरल नदी
परियोजना प्रदेश की पहली अंतरघाटी परियोजना है।
5 अक्टूबर, 2006 को लोकार्पित की गई मध्यप्रदेश की मान परियोजना धार जिले से 55 किमी. दूर ‘जीराबाद’ के पास मान नदी पर निर्मित की गई है।
मध्यप्रदेश में उपलब्ध जल संसाधनों के समुचित एवं समन्वित विकास के लिए 1956 में जल संसाधन विभाग की स्थापना किया गया।
स्वतंत्रता पूर्व ग्वालियर राज्य उत्कृष्ट एवं विकसित सिंचाई
प्रणालियों के लिए जाना जाता था ।
1905 में ग्वालियर राज्य के तत्कालीन महाराजा ने राज्य में सिंचाई विभाग की स्थापना की थी ।
अपर्याप्त वर्षा अथवा अवर्षा की स्थिति में कृत्रिम रूप से
फसलों को पानी देना सिंचाई कहलाता है।
मध्यप्रदेश में सिंचाई के प्रमुख साधन कुएँ हैं । इसके बाद
नहरें तथा तृतीय स्थान पर तालाब आते हैं ।
प्रदेश की औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी. है ।
प्रदेश के औसत से अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रं में मुरैना, ग्वालियर, दतिया, भिण्ड, शिवपुरी, टीकमगढ़ व छतरपुर मुख्य है।
प्रदेश के बालाघाट, होशंगाबाद, उज्जैन, इंदौर, धार और
खरगौन जिलों में भी औसत से अधिक सिंचाई होती है ।
प्रदेश का डिण्डोरी जिला न्यूनतम सिंचाई वाला जिला है ।
केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार प्रदेश में उपलब्ध सतह जल से 102 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता अर्जित की जा सकती है ।
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वर्तमान में मध्यप्रदेश का लगभग 37% क्षेत्र सिंचित है ।
कुँओं द्वारा प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र सिंचित (सर्वाधिक)
होता है ।
प्रदेश के बालाघाट व सिवनी जिलों में तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है ।
मध्यप्रदेश में सिंचाई उद्वहन निगम की गठन 1976 में की गई।
मध्यप्रदेश कुँओं व नलकूपों द्वारा सर्वाधिक (66.98%)
सिंचाई होती है।
प्रदेश में नहरों तथा तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र 19.50% है।
प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर, दतिया, टीकमगढ़ तथा होशंगाबाद क्षेत्र में नहरों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है।
शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में मध्यप्रदेश का
सातवाँ स्थान है ।
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