देवनागरी लिपि किसे कहते हैं | devnagri lipi kya hai

देवनागरी लिपि (Devnagri lipi) एक ऐसी भाषा है जिसमें अनेक भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाएं लिखी जाती है जैसे—  संस्कृत, पाली, हिंदी, मराठी, कोकड़ी, सिंधी, कश्मीरी, नेपाली, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगई ,भोजपुरी ,मैथिली, संथाली, जैसी भाषऐं देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

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दोस्तों यदि आप देवनागरी लिपि के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो मेरा आपसे अनुरोध है कि यह लेख आप पूरा पढ़ें क्योंकि इस लेख में हमने देवनागरी लिपि के बारे में विस्तार से बताया हुआ है जैसे की देवनागरी लिपि का विकास, देवनागरी लिपि का नामकरण एवं देवनागरी लिपि का स्वरूप, साथ ही साथ देवनागरी लिपि के गुण तथा देवनागरी लिपि के दोष और साथ ही साथ देवनागरी लिपि में सुधार संबंधी सुझाव के बारे में भी जानकारी दी गई है।

देवनागरी लिपि किसे कहते हैं | devnagri lipi kya hai
देवनागरी लिपि किसे कहते हैं | devnagri lipi kya hai

देवनागरी लिपि की उत्पत्ति devnagri lipi ka vikas

उचरित ध्वनि संकेतों की सहायता से भाव या विचार की अभिव्यक्ति भाषा कहलाती है जबकी लिखित वर्ण संकेतों की सहायता से भाव या विचार की अभिव्यक्ति लिपि भाषा श्रव्य होती है जबकी लिपि दृश्य है.

भारत की सभी लिपियां ब्राह्मी लिपि से ही निकली है यह लिपि ब्रह्मा के मुख से निःस्रत  मानी जाती है।

ब्राह्मी लिपि का प्रयोग वैदिक आर्यों ने शुरू किया ब्राह्मी लिपि का प्राचीनतम नमूना पांचवी सदी BC का है जो कि बौद्ध कालीन है।

गुप्त काल के आरंभ में ब्राह्मी के दो भेद हो गए उत्तरी ब्राह्मी एवं दक्षिणी ब्राह्मी दक्षिणी ब्राह्मी से तमिल लिपि / कलिंग लिपि, तेलुगु कन्नड़ लिपि, ग्रंथ लिपि (तमिलनाडु) मलयालम लिपि (ग्रंथ लिपि से विकसित) का विकास हुआ है।

नागरी लिपि का प्रयोग 8वीं से 9वीं सदी ईस्वी से आरंभ हुआ 10वीं से 12वीं सदी के बीच इसी प्राचीन नागरी से उत्तरी भारत की अधिकांश आधुनिक लिपियों का विकास हुआ इसकी दो शाखाएं मिलती हैं पश्चिमी एवं पूर्वी पश्चिमी शाखा की सर्वप्रमुख/ प्रतिनिधि लिपि देवनागरी लिपि है.

देवनागरी लिपि का हिंदी भाषा की अधिकृत लिपि के रूप में विकास

देवनागरी लिपि को हिंदी भाषा की अधिकृत लिपि बनाने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है अंग्रेजों की भाषा नीति फारसी की ओर अधिक झुकी हुई थी इसलिए हिंदी को भी फ़ारसी लिपि में लिखने का षड्यंत्र किया गया।

जान गिलक्राइस्ट:

हिंदी भाषा और फारसी लिपि का घालमेल फोर्ट विलियम कॉलेज 1800 से 1854 की देन थी फोर्ट विलियम कॉलेज के हिंदुस्तानी विभाग के सर्वप्रथम अध्यक्ष जान गिलक्राइस्ट थे उनके अनुसार हिंदुस्तानी की तीन शैलियां थी— दरबारी या फारसी शैली, हिंदुस्तानी शैली एवं हिंदवी शैली . वे फारसी शैली को दूरूह तथा हिंदवी शैली को गवारु मानते थे इसलिए उन्होंने हिंदुस्तानी शैली को प्राथमिकता दी उन्होंने हिंदुस्तानी के जिस रूप को बढ़ावा दिया उसका मूलाधार तो हिंदी ही था किंतु उसमें अरबी फारसी शब्दों की बहुलता थी और वह फारसी लिपि में लिखी जाती थी गिलक्राइस्ट ने हिंदुस्तानी के नाम पर असल में उर्दू का ही प्रचार किया।

विलियम प्राइस:

1823 ईस्वी में हिंदुस्तानी विभाग के अध्यक्ष के रूप में विलियम प्राइस की नियुक्ति हुई उन्होंने हिंदुस्तानी के नाम पर हिंदी (नागरी लिपि में लिखित) पर बल दिया प्राइस ने गिलक्राइस्ट द्वारा जनित भाषा संबंधी भ्रांति को दूर करने का प्रयास किया लेकिन प्राइस के बाद कॉलेज की गतिविधियों में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई।

अदालत संबंधी विज्ञपती (1837 ई):

वर्ष 1830 में अंग्रेज कंपनी द्वारा अदालत में फारसी के साथ-साथ देशी भाषाओं को भी स्थान दिया गया वास्तव में इस विज्ञप्ति का पालन 1837 ईस्वी में ही शुरू हो सका इसके बाद बंगाल में बांग्ला भाषा और बांग्ला लिपि प्रचलित हुई संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) बिहार व मध्य प्रांत (मध्य प्रदेश) में भारत के रूप में तो हिंदी का प्रचलन हुआ लेकिन लिपि के मामले में नागरी लिपि के स्थान पर उर्दू लिपि का प्रचार किया जाने लगा इसका मुख्य कारण अदालती  अमलों की कृपा तो थी ही लेकिन साथ ही मुसलमान ने भी धार्मिक आधार पर जी जान से उर्दू का समर्थन किया और हिंदी को कचहरी से ही नहीं शिक्षा से भी निकाल बाहर करने का आंदोलन चालू किया।

1857 के विद्रोह के बाद हिंदू मुसलमान के पारस्परिक विरोध में ही सरकार अपनी सुरक्षा समझने लगी अतः भाषा के क्षेत्र में उनकी नीति भेद पूर्ण हो गई अंग्रेज विद्वानों के दो दल हो गए दोनों ओर से पक्ष विपक्ष में अनेक तर्क वितर्क प्रस्तुत किए गए बीम्स साहब उर्दू का और ग्राउस साहब हिंदी का समर्थन करने वालों में प्रमुख थे।

नागरी लिपि और हिंदी तथा फारसी लिपि और उर्दू का अभिन्न संबंध हो गया था अतः दोनों से दोनों के पक्ष विपक्ष में काफी विवाद हुआ।

राजा शिवप्रसाद ‘सितारे हिंद‘ का लीपी संबंधी प्रतिवेदन (1868 ई):

फारसी लिपि के स्थान पर नागरी लिपि और हिंदी भाषा के लिए पहला प्रयास राजा शिवप्रसाद का 1868 ई में उनके लिपि संबंधी प्रतिवेदन मेमोरेंडम कोर्ट कैरक्टर इन द अपर प्रोविंस आफ इंडिया से आरंभ हुआ।

जान शोर:

एक अंग्रेज अधिकारी फ्रेडरिक जान शोर ने फारसी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं के प्रयोग पर आपत्ति व्यक्त की थी और न्यायालय में हिंदुस्तानी भाषा और देवनागरी लिपि का समर्थन किया था।

बंगाल के गवर्नर ऐशले के आदेश (1870 ई एवं 1873 ई):

वर्ष 1870 ईस्वी में बंगाल के गवर्नर ऐशले ने देवनागरी के पक्ष में एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि फरसी पुरिट उर्दू नहीं लिखी जाए बल्कि ऐसी भाषा लिखी जाए जो एक कुलीन हिंदुस्तानी फारसी से पूर्णतया और अनभिज्ञ रहने पर भी बोलता है वर्ष 1873 ईस्वी में बंगाल सरकार ने यह आदेश जारी किया कि पटना भागलपुर तथा छोटा नागपुर डिविजनों के न्यायालय व कार्यालय में सभी विज्ञप्तियां तथा घोषणाएं हिंदी भाषा तथा देवनागरी लिपि में जारी की जाए।

वर्ष 1881 ई तक आते-आते उत्तर प्रदेश के पड़ोसी प्रांतों बिहार मध्य प्रदेश में नागरी लिपि और हिंदी प्रयोग की सरकारी आज्ञा जारी हो गई तो उत्तर प्रदेश में नागरी आंदोलन को बड़ा नैतिक प्रोत्साहन मिला।

गौरी दत्त:

व्यक्तिगत रूप से मेरठ के पंडित गौरी दत्त की नगरी प्रचारक के लिए की गई सेवाएं आवेश वरणीय है गौरी दत्त ने 1874 ईस्वी में अपने संवाद तत्व में नगरी प्रकाश नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया उन्होंने और भी कई पत्रिकाओं का संपादन किया जैसे— देवनागरी गजट (1888) , देवनगर (1891),  देवनागरी प्रचारक (1892) आदि.

भारतेंदु हरिश्चंद्र:

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने नागरी आंदोलन को अभूतपूर्व शक्ति प्रदान की और वह इसके प्रतीक और नेता माने जाने लगे उन्होंने 1882 में शिक्षा आयोग के प्रश्न पत्र का जवाब देते हुए कहा सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग होता है यही ऐसा देश है जहां ना तो अदालती  भाषा शासको की मातृभाषा है और ना प्रजा की.

प्रताप नारायण मिश्र:

पंडित प्रताप नारायण मिश्र ने हिंदू– ‘हिंदू हिंदुस्तान’ का नारा लगाना शुरू किया।

1893 ईस्वी में अंग्रेज सरकार ने भारतीय भाषाओं के लिए रोमन लिपि अपनाने का प्रश्न खड़ा कर दिया इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई।

1893 ईस्वी में नागरी प्रचार एवं हिंदी भाषा के संवर्धन के लिए नागरी प्रचारिणी सभा काशी की स्थापना की गई सर्वप्रथम इस सभा ने कचहरी में नागरी लिपि का प्रवेश करना ही अपना मुख्य कर्तव्य निश्चित किया सभा ने नागरी कैरेक्टर अर्थात नागरी लिपि नामक एक पुस्तक अंग्रेजी में तैयार की जिसमें सभी भारतीय भाषाओं के लिए रोमन लिपि की अनुपयुक्तता पर प्रकाश डाला गया था।

मालवीय के नेतृत्व में 17 सदस्य प्रतिनिधिमंडल द्वारा लेफ्टिनेंट गवर्नर एंटोनी मैकडॉनल्ड को स्मरण पत्र या मेमोरियल देना 1898 ई:

मालवीय ने एक स्वतंत्र पुस्तिका कोर्ट कैरक्टर एंड प्राइमरी एजुकेशन इन नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविजंस एंड औध —NWP &O (1897ई) लिखी, जिसका बड़ा व्यापक प्रभाव पड़ा नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविजंस एंड औध यानी उत्तरी पश्चिमी प्रांतों एवं अवध का अर्थ तकरीबन समस्त अभिभाजित उत्तर प्रदेश) वर्ष 1898 ईस्वी में प्रांत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर के काशी आने पर नगरी प्रचारिणी सभा का एक प्रभावशील प्रतिनिधिमंडल मालवी के नेतृत्व में उनसे मिला और हजारों हस्ताक्षरों से युक्त एक मेमोरियल उन्हें दिया यह मालवीय जी का ही अथक प्रयास था जिसके परिणाम स्वरुप अदालत में नागरिक को प्रवेश मिल सका इसलिए अदालत में नागरी के प्रवेश का श्री मालवीय जी को दिया जाता है।

इन तमाम प्रयत्नों का शुभ परिणाम यह हुआ की 18 अप्रैल 1920 को गवर्नर साहब ने फारसी के साथ नागरिक को भी अदालतों/ कचहरियों में समान अधिकार दे दिया .

मैकडानल आदेश को जब गवर्नर जनरल की परिषद में अनुसमर्थन के लिए भेजा गया तो वहां उसमें अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव किया गया—  पर्सियन कैरक्टर यानी (फारसी लिपि) की जगह पर उर्दू लैंग्वेज तथा नागरी कैरक्टर (नागरी लिपि) के स्थान पर हिंदी लैंग्वेज कर दिया गया दूसरे शब्दों में इसने उर्दू और हिंदी पर दो अलग-अलग भाषा होने की आधिकारिक मुहर लगा दी मैकडानल आदेश को 26 जून 1900 ई को लागू किया गया सरकार का यह प्रस्ताव हिंदी के स्वाभिमान के लिए संतोषप्रदान नहीं था इसे हिंदी को आधिकारिक सम्मान नहीं दिया गया था बल्कि हिंदी के प्रति दया दिखलाई गई थी केवल हिंदी भाषी जनता के लिए सुविधा का प्रबंध किया गया था फिर भी इसे इतना श्रेय तो है ही की नागरिक को कचहरियों में स्थान दिला सका और वह मजबूत आधार प्रदान किया जिसके बल पर वह 20वीं सदी में राष्ट्र लिपि के रूप में उभर कर सामने आ सकी।

शारदा चरण मित्र (1848 से 1917 ई):

कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शारदा चरण मित्र ने अपने 1907 ईस्वी में कलकत्ता में एक लिपि विस्तार परिषद नामक संस्था की स्थापना की मित्र ने इस संस्था की ओर से देवनागर (1907 ई) पत्र प्रकाशित करके भारत की सभी भाषाओं के साहित्य को देवनागरी लिपि में प्रस्तुत करने का उपक्रम रचा इस पत्र में भिन्न-भिन्न भाषाओं के लेख देवनागरी लिपि में छापा करते थे वह अखिल भारतीय लिपि के रूप में देवनागरी लिपि के प्रथम प्रचारक थे।

नेहरू रिपोर्ट (1928 ई) की भाषा लिपि संबंधी संस्तुति:

नेहरू रिपोर्ट की भाषा लिपि संबंधी संस्तुति में कहा गया देवनागरी अथवा फारसी में लिखी जाने वाली हिंदुस्तानी भारत की राजभाषा होगी स्पष्ट है कि हिंदी भाषा की अधिकृत लिपि के मामले में इस समय तक द्वैध या विवाद की स्थिति बनी हुई थी।

संविधान सभा में भाषा संबंधी विधेयक पारित (14 सितंबर 1949 ई):

जब संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 ई को भाषा संबंधी  विधेयक पारित किया तब जाकर लिपि के मामले में विद्यमान द्वैध या विवाद अंतिम रूप से समाप्त हुआ अनुच्छेद 343(1) में स्पष्ट घोषणा की गई कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी इस प्रकार 150 वर्षों यानी (1800 से 1949 ई ) के लंबे  संघर्ष के बाद देवनागरी लिपि हिंदी भाषा की एकमात्र और अधिकृत लिपि बन पाई।

देवनागरी लिपि का नामकरण

देवनागरी लिपि को लोक नागरी एवं हिंदी लिपि भी कहा जाता है देवनागरी का नामकरण विवादास्पद है ज्यादातर विद्वान गुजरात के ना ब्राह्मणों से इसका संबंध जोड़ते हैं उनका मानना है कि गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग अर्थात नागर ब्राह्मण के नाम से इसे नागरी कहा गया अपने अस्तित्व में आने के तुरंत बाद इसने देव भाषा संस्कृति को लिपिबद्ध किया इसलिए नगरी में देव शब्द जुड़ गया और बन गया देवनागरी।

देवनागरी लिपि का स्वरूप

यह लिपि बाई ओर से दाएं ओर लिखी जाती है जबकि फारसी लिपि (उर्दू अरबी फारसी भाषा  की लिपि) दाईं ओर से बाएं ओर लिखी जाती है।
यह अक्षरात्मक लिपि है जबकि रोमन लिपि (अंग्रेजी भाषा की लिपि) वर्णनात्मक लिपि है.

देवनागरी लिपि के गुण (devnagri lipi ki visheshtaen bataiye)

  1. एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण संकेत
  2. एक वर्ण संकेत से अनिवार्यता एक ही ध्वनि व्यक्त
  3. जो ध्वनि का नाम वही वर्ण का नाम
  4. मूक वर्ण नहीं
  5. जो बोला जाता है वही लिखा जाता है
  6. एक वर्ण में दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं
  7. उच्चारण के सूक्ष्मतम भेद को भी प्रकट करने की क्षमता
  8. प्रयोग बहुत व्यापक (संस्कृत हिंदी मराठी नेपाल की एकमात्र लिपि)
  9. भारत की अनेक लिपियों के निकट

देवनागरी लिपि के दोष

  1. कुल मिलाकर 403 टाइप होने के कारण टंकन, मुद्रण में कठिनाई
  2. शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक अलंकरण के लिए
  3. अलौकिक वर्ण (ऋ, ऋ, लृ, लृ, ङ्, ञ, श- अजेय
    कोई शुद्ध उच्चारण के साथ उच्चरित नहीं कर पाता)
  4. द्विरूप वर्ण ( अ, क्ष क्ष, व त्र, ६ छ, झ झ, राण, शश्र, ल ल )
  5. समरूप वर्ण (ख में रव का, घ में ध का, म में भ का भ्रम होना)
  6. वर्णों के संयुक्त करने की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं
  7. अनुस्वार एवं अनुनासिकता के प्रयोग में एकरूपता का अभाव
  8. त्वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि लेखन में हाथ बार-बार उठाना पड़ता है
  9. वर्णों के संयुक्तीकरण में र के प्रयोग को लेकर भ्रम की स्थिति
  10. इ की मात्रा (f) का लेखन वर्ण के पहले पर उच्चारण वर्ण के बाद

हिंदी वर्णमाला क्या है विस्तार से समझाइए

देवनागरी लिपि में सुधार संबंधी सुझाव

  1. बाल गंगाधर का ‘तिलक फांट’ (1904-26)
  2. सावरकर बंधुओं का ‘अ की बारहखड़ी’
  3. श्याम सुन्दर दास का पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग का सुझाव
  4. गोरख प्रसाद का मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ अलग रखने का सुझाव ((जैसे, कुल–क ल)
  5. श्री निवास का महाप्राण वर्ण के लिए अल्पप्राण के नीचे s चिह्न लगाने का सुझाव
  6. हिन्दी साहित्य सम्मेलन का इन्दौर अधिवेशन और काका कालेलकर के संयोजकत्व में नागरी लिपि सुधार समिति का गठन (1935) और उसकी सिफारिशें
  7. काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ की बारहखड़ी और श्री निवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्णय (1945)
  8. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित आचार्य नरेन्द्र देव समिति का गठन (1947) और उसकी सिफारिशें
  9. शिक्षा मंत्रालय के देवनागरी लिपि साहित्यिक प्रकाशन- ‘मानक देवनागरी वर्णमाला’ (1966 ई.), ‘हिन्दी लिपि का मानकीकरण’ (1967 ई.), ‘देवनागरी लिपि तथा हिन्दी लिपि का मानकीकरण’ (1983 ई.) आदि।

FAQs-

devnagri lipi kise kahate hain

देवनागरी लिपि को विशेष रूप से हिन्दी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए प्रमुख लिपि के रूप में पहचाना जाता है। यह लिपि देवनागरी नामक नगर के नाम पर आधारित है और इसका प्रमुख उपयोग संस्कृत लिखने में होता है, लेकिन यह बहुत सारी अन्य भाषाओं के लिखने के लिए भी उपयोग किया जाता है।

हिंदी किस भाषा परिवार की भाषा है?

हिंदी भारोपीय भाषा परिवार की भाषा है।

भारत में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा कौन सी है?

भारत में हिंदी भाषा सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है।

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