समास किसे कहते हैं? दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को (samas kise kahate hain) समास कहते हैं।
समास शब्द दो शब्दों ‘सम’ (संक्षिप्त) एवं ‘आस’ (कथन/ शब्द) के मेल से बना है जिसका अर्थ है संक्षिप्त कथन या शब्द । समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है।
समस्त पद/ सामासिक पद: समास के नियमों से बना शब्द समस्त पद या सामासिक पद कहलाता है।
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समास विग्रह: समस्त पद के सभी पदों को अलग-अलग किए जाने की प्रक्रिया समास विग्रह या व्यास कहलाती है जैसे— नील कमल का विग्रह ’नीला है जो कमल’ तथा ’चौराहा’ का विग्रह है— चार राहों का समूह।
स्पष्ट है कि समास का विलोम है व्यास समास संश्लेष, संक्षेप है जबकि व्यास विश्लेष, विस्तार है।
समास रचना में प्राय: दो पद होते हैं पहले को पूर्व पद और दूसरे को उत्तर पद कहते हैं जैसे— राजपुत्र में पूर्व पद राज है और उत्तर पद पुत्र है समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियां लुप्त हो जाती हैं जैसे— राजा का पुत्र = राजपुत्र यहां का विभक्ति लुप्त हो गई है इसके अलावा कई शब्दों में कुछ विकार भी आ जाता है जैसे— काठ की पुतली = कठपुतली (काठ के ‘का’ का ‘क’ बन जाना); घोड़े का सवार + घुड़सवार (घोड़े के ’घो’ का ’घु ’बन जाना)।

समास के भेद
समास के 6 प्रमुख भेद हैं
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- दिगु समास
- द्वंद समास
- बहुव्रीहि समास
पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण—
पूर्व पद प्रधान — अव्ययीभाव
उत्तर पद प्रधान — तत्पुरुष, कर्मधारय व दिगु
दोनों पद प्रधान — द्वंद
दोनों पद अप्रधान — बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)
- अव्ययीभाव समास :
जिस समास का पहला पद (पूर्व पद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं जैसे पहले पद अनु , आ, प्रति, भर, यथा, यावत, हर, आदि होता है।
पर्वपद—अव्यय | + | उत्तर पद | = | समस्त पद | विग्रह |
---|---|---|---|---|---|
प्रति | + | दिन | = | प्रतिदिन | प्रत्येक दिन |
आ | + | जन्म | = | आजन्म | जन्म से लेकर |
यथा | + | संभव | = | यथासंभव | जैसा संभव हो |
अनु | + | रूप | = | अनुरूप | रूप के योग |
भर | + | पेट | = | भरपेट | पेट भर के |
प्रति | + | कूल | = | प्रतिकूल | इच्छा के विरुद्ध |
हाथ | + | हाथ | = | हाथों–हाथ | हाथ ही हाथ में |
- तत्पुरुष समास:
जिस समास में बाद का अथवा उत्तर पद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक चिन्ह लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे—
राजा का कुमार = राजकुमार
धर्म का ग्रंथ = धर्मग्रंथ
रचना को करने वाला = रचनाकार
तत्पुरुष समास के भेद विभक्तियों के नाम के अनुसार 6 भेद हैं
1.कर्म तत्पुरुष
2.करण तत्पुरुष
3.संप्रदान तत्पुरुष
4.अपादान तत्पुरुष
5.संबंध तत्पुरुष
6.अधिकरण तत्पुरुष
1.कर्म तत्पुरुष : इसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लेप हो जाता है जैसे—
गगन को चूमने वाला — गगनचुंबी
यश को प्राप्त करने वाला— यशप्राप्त
चिड़ियों को मारने वाला— चिड़ीमार
ग्राम को गया हुआ — ग्रामगत
रथ को चलाने वाला— रथचालक
2.करण तत्पुरुष: इस समय करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है जैसे —
करुणा से पूर्ण — करुणापूर्ण
भय से आकुल — भयाकुल
रेखा से अंकित — रेखांकित
शौक से ग्रस्त — शोकग्रस्त
मन से चाहा— मनचाहा
पद से दलित — पददलित
सूर द्वारा रचित — सूर्यरचित
3.संप्रदान तत्पुरुष: इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ लुप्त हो जाती है; जैसे—
प्रयोग के लिए शाला — प्रयोगशाला
स्नान के लिए घर — स्नानघर
यज्ञ के लिए शाला — यज्ञशाला
गौ के लिए शाला — गौशाला
देश के लिए भक्ति — देशभक्ति
डाक के लिए गाड़ी — डाकगाड़ी
परीक्षा के लिए भवन — परीक्षाभवन
हाथ के लिए कड़ी — हथकड़ी
- अपादान तत्पुरुष: इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ (अलग होने का भाव) लुप्त हो जाता है; जैसे— धन से ही — धनहीन
पथ से भ्रष्ट — पथभ्रष्ट
ऋण से मुक्त — ऋणमुक्ति
गुण से हीन — गुणहीन
पाप से मुक्त — पापमुक्त
जल से हीन — जलहीन
देश से निकला — देशनिकाला - संबंध तत्पुरुष: इसमें संबंध कारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’ लुप्त हो जाती है; जैसे— राजा का पुत्र — राजपुत्र
राजा की आज्ञा — राजाज्ञा
पर के अधीन — पराधीन
राजा का कुमार — राजकुमार
देश की रक्षा — देशरक्षा
शिव का आलय — शिवालय
ग्रह का स्वामी — गृहस्वामी
विद्या का सागर — विद्यासागर - अधिकरण तत्पुरुष: इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’, ‘पर’ लुप्त हो जाती है; जैसे— शोक में मग्न — शोकमग्न
पुरुषों में उत्तम — पुरुषोत्तम
आप पर बीती — आपबीती
गृह में प्रवेश — गृहप्रवेश
लोक में प्रिय — लोकप्रिय
धर्म में वीर — धर्मवीर
कला में श्रेष्ठ — कलाश्रेष्ठ
आनंद में मग्न — आनंदमग्न
नोट: तत्पुरुष समास के उपर्युक्त भेद के अलावे कुछ अन्य भेद भी हैं जिसमें प्रमुख है नञ् समास।
नञ् समास: जिस समास के पूर्व पद में निषेध सूचक या नकारात्मक शब्द (अ, अन्, न; ग़ैर, ना आदि) लगे हो; जैसे —
अधर्म (न धर्म),
अयोग्य (न योग्य),
अनहोनी (न होनी),
अनाचार (न आचार),
अनावश्यक (न आवश्यक),
अनिष्ट (न इष्ट)
नपुंसक (न पुंसक)
गैरवाजिब (ना वाजिब),
नापसंद (ना पसंद),
नामर्द (ना मर्द),
नालायक (ना लायक) आदि
- कर्मधाराय समास : जिस समस्त पद का उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्व पद व उत्तर पद में उपमान उपमेय अथवा विशेषण विशेष्य संबंध हो ,उसे कर्मधारय समास कहते हैं जैसे—
पहचान – विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो’, ‘के सामान’ आदि आते हैं.
कमल के समान — चरणकमल
कनक की – सी लता — कनकलाता
कमल के समान नयन — कमलनयन
प्राणों के समान प्रिय — प्राणप्रिय
चंद्र के समान मुख— चंद्रमुख
मृग के समान नयन — मृगनयन
देह रूपी लता — देहलता
क्रोध रूपी अग्नि क्रोधाग्नि
लाल है जो मणि — लालमणि
नीला है जो कंठ — नीलकंठ
महान है जो पुरुष — महापुरुष
महान है जो देव — महादेव
आधा है जो मरा अधमरा
परम है जो आनंद — परमानंद
- दिगु समास: जिस समस्त पद का पूर्व पद संख्या वाचक विशेषण हो वह दिगु समास कहलाता है। इसमें समूह या समाहार का ज्ञान होता है; जैसे—
सात सिंधुओं का समूह — सप्तसिंधु
दो पहरों का समूह — दोपहर
तीनों लोकों का समाहार — त्रिलोक
चार राहों का समूह — चौराहा
नवरात्रियों का समूह — नवरात्र
सात ऋषियों का समूह —सप्तऋषि
पांच मढ़ीयों का समूह — पचमढ़ी
सात दिनों का समूह — सप्ताह
तीनों कोणों समाहार— त्रिकोण
तीन रंगों का समूह — तिरंगा
- द्वंद समास: जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह पर ‘और’, ‘एवं’, ‘या’, ‘अथवा’ लगता हो वह द्वंद समास कहलाता है जैसे—
भला या बुरा — भला –बुरा
अचार और विचार— अचार– विचार
नाक और कान— नाक –कान
आगे और पीछे— आगे –पीछे
ऊंच या नीच— ऊंच– नीच
देश और विदेश— देश-विदेश
खरा खोटा — खरा –खोटा
ठंडा या गरम — ठंडा– गरम
तन और मन और धन— तन –मन– धन
सुख और दुख— सुख – दुख
6. बहुव्रीहि समास: जिस समस्त पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं उसमें बहुव्रीहि समास होता है, जैसे— नीलकंठ, नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव यहां पर दोनों पदों ने मिलकर एक तीसरे पद ‘शिव’ का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास कहलाता है.
लंबोदर— लंबा है उदर जिसका – गणेश
दशानन— 10 है आनन जिसके – रावण
महावीर— महान वीर है जो – हनुमान
चतुर्भुज — चार है भुजाएं जिसकी – विष्णु
प्रधानमंत्री— मंत्रियों में प्रधान है जो – प्रधानमंत्री
पीतांबर— पीत है अंबर जिसका –कृष्णा
मृत्युंजय— मृत्यु को जीतने वाला –शंकर
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में क्या अंतर है?
दोनों समासों में अंतर समझने के लिए उनके विग्रह पर ध्यान देना आवश्यक है कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेषय या उपमेय होता है; जैसे— नील गगन में नील विशेषण है तथा गगन विशेष है इसी तरह चरण कमल में चरण उपमेय है और कमल उपमान है अतः यह दोनों उदाहरण कर्मधारय समास के हैं।
अब बात करें बहुव्रीहि समास के तो इसमें समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है जैसे चक्रधर चक्र को धारण करता है जो अर्थात कृष्ण यहां चक्रधर कृष्ण (संज्ञा) का विशेषण है।
उदाहरण—
नीलकंठ— नीला है जो कंठ— कर्मधारय समास है.
नीलकंठ— नीला है कंठ जिसका अर्थात —शिव— बहुव्रीहि समास
लंबोदर— मोटे पेट वाला— कर्मधारय समास
लंबोदर— लंबा है उदर जिसका अर्थात— गणेश— बहुव्रीहि समास
दिगु और बहुव्रीहि समास में क्या अंतर है?
दिगु समास का पहला पद संख्या वाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है जैसे—
चतुर्भुज— चार भुजाओं का समूह — दिगु समास
चतुर्भुज — चार है भुजाएं जिसकी अर्थात विष्णु — बहुव्रीहि समास
पंचवटी — पंचवटों का समाहार— दिगु समास
पंचवटी— पांच वटों से घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहां वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया— बहुव्रीहि समास
दशानन— दस आननों का समूह — दिगु समास
दशानन— दस आनन है जिसके अर्थात रावण — बहुव्रीहि समास
दिगु और कर्मधारय समास में अंतर क्या है?
दिगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय समास का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।
दिगु का पहला पड़ ही विशेषण बनकर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय समास में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है जैसे—
नवरत्न— नवरत्नों का समूह — दिगु समास
चतुर वर्ण— चार वर्णों का समूह — दिगु समास
पुरुषोत्तम— पुरुषों में जो है उत्तम — कर्मधारय समास
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संधि और समास में क्या अंतर है
अर्थ की दृष्टि से यद्यपि दोनों शब्द समान है अर्थात दोनों का अर्थ ‘मेल’ ही है तथापि दोनों में कुछ भिन्नताएं हैं जो निम्नलिखित हैं—
1.संधि वर्णों का मेल है और समास शब्दों का मेल है।
2.संधि में वर्णों के योग से वर्ण परिवर्तन भी होता है जबकि समास में ऐसा नहीं होता।
3.समास में बहुत से पदों के बीच के कारक कॉन का अथवा समुच्चयबोधकों का लोप हो जाता है जैसे—
विद्या + आलय= विद्यालय —संधि कहलाता है
राजा का पुत्र = राजपुत्र —समास
4.संधि के तोड़ने को संधि विच्छेद कहते हैं जबकि समास के पदों को अलग करने को समास विग्रह कहते हैं।
समास विग्रह
सामासिक पद | विग्रह | समास |
---|---|---|
अगोचर | न गोचर | नञ् |
अचल | न चल | नञ् |
अजन्मा | न जन्मा | नञ् |
अधर्म | न धर्म | नञ् |
अनन्त | न अंत | नञ् |
अनेक | न एक | नञ् |
अनपढ़ | न पढ़ | नञ् |
अठन्नी | आठ आनों का समाहार | दिगु समास |
अनुकूल | कुल के अनुसार | अव्ययीभाव समास |
अनुरूप | रूप के ऐसा | अव्ययीभाव समास |
आजन्म | जन्म से लेकर | अव्ययीभाव समास |
आशालता | आशा रूपी लता | कर्मधारय समास |
आपबीती | आप पर बीती | सप्तमी तत्पुरुष |
आकाशवाणी | आकाश से वाणी | पंचमी तत्पुरुष |
आनंदाआश्रम | आनंद का आश्रम | षष्ठी तत्पुरुष |
कठफोड़वा | काठ को फोड़ने वाला | द्वितीय तत्पुरुष |
कपीश | कापियों में है ईश जो हनुमान | बहुव्रीहि |
कविश्रेष्ठ | कवियों में श्रेष्ठ | सप्तमी तत्पुरुष |
कापुरुष | कायर पुरुष | कर्मधारय |
कुंभकार | कुंभ को करने या बनाने वाला | उपपद तत्पुरुष |
काव्यकार | काव्य की रचना करने वाला | उपपद तत्पुरुष |
कृषिप्रधान | कृषि में प्रधान | सप्तमी तत्पुरुष |
कुसुमकोमल | कुसुम के समान | कर्मधारय |
कपड़ा – लत्ता | कपड़ा और लत्ता | द्वंद समास |
कृष्णार्पण | कृष्ण के लिए अर्पण | चतुर्थी तत्पुरुष |
क्षत्रियधम | क्षत्रियों में अधम | सप्तमी तत्पुरुष |
खगेश | खगों का ईश है जो वह गरुड़ | बहुव्रीहि समास |
गंगाजल | गंगा का जल | षष्ठी तत्पुरुष |
गगनचुंबी | गगन को चूमने वाला | द्वितीय तत्पुरुष |
गाड़ी–घोड़ा | गाड़ी और घोड़ा | द्वंद |
गिरहकट | गिरह को काटने वाला | द्वितीय तत्पुरुष |
गिरिधर | गिरी को धारण करें जो वह श्री कृष्णा | बहुव्रीहि |
गोपाल | गो का पालन जो करें वह श्री कृष्ण | बहुव्रीहि |
गौरीशंकर | गौरी और शंकर | द्वंद |
गृहस्थ | गृह में स्थित | अपपद तत्पुरुष |
गृहागत | ग्रह को आगत | कर्म तत्पुरुष |
घर – द्वार | घर और द्वारा | द्वंद |
चक्रधर | चक्र को जो धारण करता है वह विष्णु | बहुव्रीहि |
चतुरानन | चार है आनन जिनको वह ब्रह्म | बहुव्रीहि |
चंद्रभाल | भाल पर चंद्रमा जिसके हैं वह शिव | बहुव्रीहि |
चवन्नी | चार आने का समाहार | दिगु |
चंद्रोदय | चंद्र का उदय | षष्ठी तत्पुरुष |
चंद्रबदन | चंद्रमा के समान बदन | कर्मधारय |
चरणकमल | कमल के समान चरण | कर्मधारय |
चिड़ीमार | चिड़िया को मारने वाला | द्वितीय तत्पुरुष |
चौपाया | चार पांव वाला | दिगु |
चौराहा | चार राहों का मिलन स्थान | दिगु |
जलज | जल में उत्पन्न होता है वह कमल | बहुव्रीहि |
जलद | जल देता है जो वह बादल | बहुव्रीहि |
जन्मांध | जन्म से अंधा | तृतीय तत्पुरुष |
सामासिक | विग्रह | समास |
---|---|---|
जीवनमुक्त | जीवन से मुक्त | पंचमी तत्पुरुष |
जबघड़ी | जब के लिए घड़ी | चतुर्थी तत्पुरुष |
तिलपापड़ी | तिल से बनी पापड़ी | कर्मधारय |
तिलचट्टा | तिल को चाटने वाला | द्वितीय तत्पुरुष |
दयासागर | दया का सागर | षष्ठी तत्पुरुष |
दहीबड़ा | दही में भिगोए बड़ा | मध्यपदलोपी कर्मधारय |
दानवीर | दान में वीर | सप्तमी तत्पुरुष |
दिनानुदिन | दिन प्रतिदिन | अव्ययीभाव |
दुखसंतप्त | दुख से संतप्त | तृतीय तत्पुरुष |
देशभक्ति | देश के लिए भक्ति | चतुर्थी तत्पुरुष |
देशनिकाला | देश से निकला | पंचमी तत्पुरुष |
वीणापाणी | वीणा है पाणी हाथ में जिसके वह सरस्वती | बहुव्रीहि |
विद्यार्थी | विद्या का अर्थी | षष्ठी तत्पुरुष |
वज्रायुध | वज्र है आयुध जिसका वह इंद्र | बहुव्रीहि |
लोहपुरुष | लौह सदृष्य पुरुष | कर्मधारय |
राजकन्या | राजा की कन्या | षष्ठी तत्पुरुष |
रामायण | राम का अयन | षष्ठी तत्पुरुष |
राधा–कृष्ण | राधा और कृष्णा | द्वंद |
रसोईघर | रसोई के लिए घर | चतुर्थी तत्पुरुष |
यथेष्ट | यथा इष्ट | अव्ययीभाव |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार | अव्ययीभाव |
यथाक्रम | क्रम के अनुसार | अव्ययीभाव |
मृगनयन | मृग के समान नयन | कर्मधारय |
मुरलीधर | मुरली को धरे रहे वह श्री कृष्णा | बहुव्रीहि |
मालगोदाम | माल के लिए गोदाम | चतुर्थी तत्पुरुष |
महारानी | महती रानी | कर्मधारय |
महाशय | महान आशय | कर्मधारय |
मनगढ़ंत | मन से गढ़ा हुआ | तृतीय तत्पुरुष |
मनमौजी | मन से मोजी | तृतीय तत्पुरुष |
बार-बार | हर बार | अव्ययीभाव |
पुस्तकालय | पुस्तक का आलय (घर) | षष्ठी तत्पुरुष |
पुत्रशोक | पुत्र के लिए शोक | चतुर्थी तत्पुरुष |
पीतांबर | पीला है अंबर जिसका वह श्री कृष्णा | बहुव्रीहि |
पादप | पैर से पीने वाला | उपपद तत्पुरुष |
पाप–पुण्य | पाप और पुण्य | द्वंद |
पॉकेटमार | पॉकेट को मारने वाला | द्वितीय तत्पुरुष |
परीक्षाउपयोगी | परीक्षा के लिए उपयोगी | चतुर्थी तत्पुरुष |
पल–पल | हर पल | अव्ययीभाव |
परमेश्वर | परम ईश्वर | कर्मधारय |
प्रतिदिन | दिन–दिन | अव्ययीभाव |
प्रत्येक | प्रति एक | अव्ययीभाव |
पद एलच्युत | पद से च्युत | पंचमी तत्पुरुष |
पददलित | पद से दलित | तृतीय तत्पुरुष |
पकौड़ी | पक्की हुई बड़ी | मध्यपदलोपी कर्मधारय |
नेत्रहीन | नेत्र से हीन | पंचमी तत्पुरुष |
नीलांबर | नीला अंबर या नीला है अंबर जिसका वह बलराम | बहुव्रीहि |
नवयुवक | नव युवक | कर्मधारय |
नरोत्तम | नरों में उत्तम | सप्तमी तत्पुरुष |
धर्मविमुख | धर्म से विमुख | पंचमी तत्पुरुष |
धर्माधर्म | धर्म और अधर्म | द्वंद |
धनहीन | धन से हीन | पंचमी तत्पुरुष |
देशगत | देश को गया हुआ | द्वितीय तत्पुरुष |
देवासुर | देव और असुर | द्वंद |
देश–विदेश | देश और विदेश | द्वंद |
तत्पुरुष समास के 10 उदाहरण बताइए
- देशांतर
- मुख–दर्शन
- देश–प्रेम
- गौशाला
- विद्यार्थी
- कन्यादान
- वनवास
- नरोत्तम
- गगनचुंबी
- राजकुमार
- धर्मग्रंथ
- रचनाकार
FAQs-
समास किसे कहते हैं | Samas Kise Kahate Hain
दो या दो से अधिक शब्द मिलकर जब एक नया उस से मिलता जुलता शब्द का निर्माण करते हैं वह समास कहलाता है।
दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को क्या कहते हैं।
समास
समास का शाब्दिक अर्थ क्या होता है?
संक्षेप
प्रतिदिन कौन सा समास है?
अव्ययीभाव
जितेंद्रिय में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि
देवासुर में कौन सा समास है?
द्वंद
देशांतर में कौन सा समास है?
तत्पुरुष
दीनानाथ में कौन सा समास है?
कर्मधारय
निशाचर में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
चौराहा में कौन सा समास है?
दिगु समास
10 मुख में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
सुपुरुष में कौन सा समास है?
कर्मधारय समास
त्रिभुवन में कौन सा समास है?
दिगु समास
रुपया – पैसा में कौन सा समास है?
द्वंद समास
पाप–पुण्य में कौन सा समास है?
द्वंद समास
लंबोदर में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
देश–प्रेम में कौन सा समास है?
तत्पुरुष समास
परमेश्वर में कौन सा समास है?
कर्मधारय समास
अनायास में कौन सा समास है?
नञ् समास
गोशाला में कौन सा समास है?
तत्पुरुष समास
नवग्रह में कौन सा समास है?
दिगु समास
विद्यार्थी में कौन सा समास है?
तत्पुरुष समास
कन्यादान में कौन सा समास है?
तत्पुरुष समास
साग–पात में कौन सा समास है?
द्वंद समास
नीलकमल में कौन सा समास है?
कर्मधारय समास
चतुर्भुज में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
भाई–बहन में कौन सा समास है?
द्वंद समास
वनवास में कौन सा समास है?
तत्पुरुष समास
पंचवटी में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
पीतांबर में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
नरोत्तम में कौन सा समास है?
तत्पुरुष समास
युधिष्ठिर में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
गगनचुंबी में कौन सा समास है?
तत्पुरुष समास
धक्का–मुक्की में कौन सा समास है?
द्वंद समास
त्रिफला में कौन सा समास है?
दिगु समास
तन–मन–धन में कौन सा समास है?
द्वंद समास
चक्रपाणि में कौन सा समास है?
बहुव्रीहि समास
पाप– पुण्य में कौन सा समास है?
द्वंद समास
पंचवटी में कौन सा समास है?
दिगु समास
मृगनयनी में कौन सा समास है?
कर्मधारय समास
तत्पुरुष समास की परिभाषा या तत्पुरुष समास किसे कहते हैं
जिस समास में बाद का अथवा उत्तर पद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक चिन्ह लुप्त हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे– राजा का कुमार = राजकुमार
दोस्तों इस लेख में हमने समास किसे कहते हैं | Samas Kise Kahate Hain और समास के कितने प्रकार होते हैं साथ ही साथ समास विग्रह के बारे में विस्तार से बताया हुआ है यदि आप पढ़ रहे हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं कि यह लेख आपको कैसा लगा साथ ही साथ इस पोस्ट में समाज से संबंधित कोई जानकारी सही नहीं है तो कमेंट करके जरूर बताएं।