दोस्तो इस लेख में arth ke aadhar par vakya bhed, rachna ke aadhar par vakya bhed ya arth ki drishti se vakya bhed ke baare mein janenge.
yadi aap Arth ke Aadhar per vakya bhed Janna chahte Hain to isliye ko ant Tak jarur padhen ham is lekh mein Arth ke Aadhar per vakya bhed AVN Rachna ke Aadhar per vakya bhed ke bare mein vistar se bataya hua hai jise padhakar aap vakya bhed ke bare mein bahut acche se jaan sakte hain yadi aap Madhya Pradesh ke kisi bhi pratiyogi Pariksha ki taiyari kar rahe hain to nishchit taur se yah jankari aapke liye bahut helpful sabit hone wala hai.

वाक्य सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो, वाक्य कहलाता है ।
वाक्य के तत्व
वाक्य में निम्नलिखित छः तत्व अनिवार्य हैं—
- सार्थकता
- योग्यता
- आकांक्षा
- निकटता
- पदक्रम
- अन्वय
- सार्थकता : वाक्य का कुछ न कुछ अर्थ अवश्य होता है। अतः इसमें सार्थक शब्दों का ही प्रयोग होता है।
- योग्यता : वाक्य में प्रयुक्त शब्दों में प्रसंग के अनुसार अपेक्षित अर्थ प्रकट करने की योग्यता होती है; जैसे—’चाय खाई’, यह वाक्य नहीं है क्योंकि चाय खाई नहीं जाती बल्कि पी जाती है।
- आकांक्षा : ‘आकांक्षा’ का अर्थ है ‘इच्छा’, वाक्य अपने
आप में पूरा होना चाहिए। उसमें किसी ऐसे शब्द की कमी नहीं होनी चाहिए जिसके कारण अर्थ की अभिव्यक्ति में अधूरापन लगे। जैसे—पत्र लिखता है, इस वाक्य में क्रिया के कर्ता को जानने की इच्छा होगी। अतः पूर्ण वाक्य इस प्रकार होगा-राम पत्र लिखता है ।
- निकटता : बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में
परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक है, रूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अतः वाक्य के पद निरंतर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए ।
- पदक्रम : वाक्य में पदों का एक निश्चित क्रम होना चाहिए। ‘सुहावनी है रात होती चाँदनी’ इसमें पदों का क्रम व्यवस्थित न होने से इसे वाक्य नहीं मानेंगे। इसे इस प्रकार होना चाहिए—‘चाँदनी रात सुहावनी होती है’ ।
- अन्वय : अन्वय का अर्थ है-मेल । वाक्य में लिंग, वचन, पुरुष, काल, कारक आदि का क्रिया के साथ ठीक-ठीक मेल होना चाहिए; जैसे—‘बालक और बालिकाएँ गईं, इसमें कर्ता क्रिया अन्वय ठीक नहीं है। अतः शुद्ध वाक्य होगा ‘बालक और बालिकाएँ गए’ ।
वाक्य के अंग
वाक्य के दो अंग हैं— 1. उद्देश्य, 2. विधेय
- उद्देश्य (Subject) : जिसके बारे में कुछ बताया जाता है। उसे उद्देश्य कहते हैं; जैसे- अनुराग खेलता है। सचिन दौड़ता है के विषय में बताया गया है । अतः ये उद्देश्य हैं। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है जैसे- ‘परिश्रम करने वाला व्यक्ति सदा सफल होता है।’ इस वाक्य में कर्ता (व्यक्ति) का विस्तार ‘परिश्रम करने वाला’ है ।
- विधेय (Predicate) : वाक्य में उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं। जैसे—अनुराग खेलता है। इस वाक्य में ‘खेलता है’ विधेय है। दूसरे शब्दों में वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है ।
इसके अंतर्गत विधेय और विधेय का विस्तार आता है; जैसे-लंबे-लंबे बालों वाली लड़की अभी अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई। इस वाक्य में विधेय (गई) का विस्तार ‘अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर’ है ।
वाक्य के भेद | vakya bhed
वाक्य अनेक प्रकार के हो सकते हैं। उनका विभाजन हम दो आधारों पर कर सकते हैं-
अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद | arth ke aadhar par vakya bhed
अर्थ के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद हैं-
(a) विधानवाचक (Assertive Sentence) : जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे—मैंने दूध पिया। वर्षा हो रही है। राम पढ़ रहा है।
(b) निषेधवाचक (Negative Sentence) : जिन वाक्यों से कार्य न होने का भाव प्रकट होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे—मैंने दूध नहीं पिया। मैंने खाना नहीं खाया। तुम मत लिखो ।
(c) आज्ञावाचक (Imperative Sentence) : जिन वाक्यों से आज्ञा, प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं; जैसे—बाज़ार जाकर फल ले आओ। मोहन तुम
बैठ कर पढ़ो। बड़ों का सम्मान करो ।
(d) प्रश्नवाचक (Interrogative Sentence) : जिन वाक्यों से किसी प्रकार का प्रश्न पूछने का ज्ञान होता है, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- सीता तुम कहाँ से आ रही हो? तुम क्या पढ़ रहे हो ? रमेश कहाँ जाएगा ?
(e) इच्छावाचक (Illative Sentence) : जिन वाक्यों से इच्छा, आशीष एवं शुभकामना आदि का ज्ञान होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं; जैसे—तुम्हारा कल्याण हो । आज तो मैं केवल फल खाऊँगा। भगवान तुम्हें लंबी उमर दे ।
(f) संदेहवाचक (Sentence indicating Doubt) : जिन वाक्यों से संदेह या संभावना व्यक्त होती है, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे—शायद शाम को वर्षा हो जाए। वह आ रहा होगा, पर हमें क्या मालूम। हो सकता है राजेश आ जाए।
(g) विस्मयवाचक (Exclamatory Sentence) : जिन वाक्यों से आश्चर्य, घृणा, क्रोध, शोक आदि भावों की अभिव्यक्ति होती है, उन्हें विस्मयवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- वाह! कितना सुंदर दृश्य है । हाय ! उसके माता-पिता दोनों ही चल बसे। शाबाश! तुमने बहुत अच्छा काम किया।
(h) संकेतवाचक (Conditional Sentence): जिन वाक्यों से शर्त (संकेत) का बोध होता है यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे यदि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होगे। पिताजी अभी आते तो अच्छा होता। अगर वर्षा होगी तो फसल भी होगी।
रचना के आधार पर वाक्य के भेद I rachna ke aadhar par vakya bhed
रचना के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं-
(a) सरल वाक्य/साधारण वाक्य (Simple Sentence) : जिन वाक्यों में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उन्हें सरल वाक्य या साधारण वाक्य कहते हैं। सरल वाक्य में एक ही समापिका क्रिया (करता है, किया, करेगा आदि) होती है; जैसे—मुकेश पढ़ता है। शिल्पी पत्र लिखती है। राकेश ने भोजन किया।
(b) संयुक्त वाक्य (Compound Sentence) : जिन वाक्यों में दो या दो से अधिक सरल वाक्य योजकों (और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि) से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते हैं; जैसे—वह सुबह गया और शाम को लौट आया। प्रिय बोलो पर असत्य नहीं । उसने बहुत परिश्रम किया किंतु सफलता नहीं मिली ।
(c) मिश्रित / मिश्र वाक्य (Complex Sentence) : जिन वाक्यों में एक प्रधान (मुख्य) उपवाक्य हो और अन्य आश्रित (गौण) उपवाक्य हों तथा जो आपस में ‘कि’; ‘जो’; ‘क्योंकि’, ‘जितना
उतना…, ‘जैसा वैसा, ‘जब ..तब…, ‘जहाँ … वहाँ….. ‘जिधर … उधर…. ‘अगर / यदि तो… ‘यद्यपि… तथापि, आदि से मिश्रित (मिले-जुले) हों, उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं। इनमें एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती है; जैसे—मैं जानता हूँ कि तुम्हारे अक्षर अच्छे नहीं बनते। जो लड़का कमरे में बैठा है वह मेरा भाई है । यदि परिश्रम करोगे तो उत्तीर्ण हो जाओगे।
वाक्य-विग्रह (Analysis) : वाक्य के विभिन्न अंगों को अलग-अलग किये जाने की प्रक्रिया को वाक्य विग्रह कहते हैं। इसे ‘वाक्य-विभाजन’ या ‘वाक्य-विश्लेषण’ भी कहा जाता है।
सरल वाक्य का विग्रह करने पर एक उद्देश्य और एक विधेय बनते हैं। संयुक्त वाक्य में से योजक को हटाने पर दो स्वतंत्र उपवाक्य (यानी दो सरल वाक्य) बनते हैं। मिश्र वाक्य में से योजक को हटाने पर दो अपूर्ण उपवाक्य बनते हैं।
सरल वाक्य = 1 उद्देश्य + 1 विधेय –
संयुक्त वाक्य मिश्र वाक्य सरल वाक्य + सरल वाक्य प्रधान उपवाक्य + आश्रित उपवाक्य
उपवाक्य (Clause)
यदि किसी एक वाक्य में एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं तो वह वाक्य उपवाक्यों में बँट जाता है और उसमें जितनी भी समापिका क्रियाएं होती हैं उतने ही उपवाक्य होते हैं। इन उपवाक्यों में से जो वाक्य का केंद्र होता है, उसे मुख्य या प्रधान उपवाक्य (Main clause) कहते हैं और शेष को आश्रित उपवाक्य (Subordinate clause) कहते हैं। आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
- संज्ञा उपवाक्य : जो आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य
की क्रिया के कर्ता, कर्म अथवा क्रिया पूरक के रूप में प्रयुक्त हों, उन्हें संज्ञा उपावाक्य कहते हैं; जैसे-मैं जानता हूँ कि वह बहुत ईमानदार है। उसका विचार है कि राम सच्चा आदमी है। रश्मि ने कहा कि उसका भाई पटना गया है। इन वाक्यों में
रंगीन अक्षरों वाले अंश संज्ञा उपवाक्य हैं।
पहचान : संज्ञा उपवाक्य का प्रारंभ ‘कि’ से होता है।
- विशेषण उपवाक्य: जब कोई आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की संज्ञा पद की विशेषता बताते हैं, उन्हे विशेषण उपवाक्य कहते हैं; जैसे—मैंने एक व्यक्ति को देखा जो मोटा था। वे फल कहाँ है जिन को आप लाए थे। इन वाक्यों में रंगीन अक्षरों वाले अंश विशेषण उपवाक्य हैं।
पहचान : विशेषण उपवाक्य का प्रारंभ जो अथवा इसके किसी रूप (जिसे, जिस को, जिसने, जिन को आदि) से होता है।
- क्रियाविशेषण उपवाक्य : जो आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बताए, उसे क्रियाविशेषण उपवाक्य कहते हैं। ये प्रायः क्रिया का काल, स्थान, रीति परिमाण, कारण आदि के सूचक क्रियाविशेषणों के द्वारा प्रधान वाक्य से जुड़े रहते हैं; जैसे—मैं उससे नहीं बोलता, क्योंकि बदमाश है। जब वर्षा हो रही थी तब मैं कमरे में था। जहाँ-जहाँ वे गए, उनका स्वागत हुआ। यदि मैंने परिश्रम किया होता तो अवश्य सफल होता । यद्यपि वह गरीब है, तथापि ईमानदार है। इन वाक्यों में रंगीन अक्षरों वाले अंश क्रियाविशेषण उपवाक्य हैं।
पहचान : क्रियाविशेषण उपवाक्य का प्रारंभ ‘क्योंकि’ ‘जितना’, ‘जैसा’, ‘जब’, ‘जहाँ’, ‘जिधर’, ‘अगर/यदि’, ‘यद्यपि ‘ आदि से होता है ।
उपवाक्य और पदबंध : उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध है । ‘मेरा भाई मोहन बीमार है’ उपवाक्य है और इसमें ‘मेरा भाई मोहन’ संज्ञा पदबंध है । पदबंध में अधूरा भाव प्रकट होता है किन्तु उपवाक्य में पूरा भाव प्रकट हो भी सकता है और कभी-कभी नहीं भी । उपवाक्य में क्रिया अनिवार्य रहती है जबकि पदबंध में क्रिया का होना आवश्यक नहीं। उदाहरण :
रमेश की बहन शीला तेज़ी से चलती बस से गिर पड़ी और उसे कई चोटें आईं । (वाक्य)
रमेश की बहन शीला तेज़ी से चलती बस से गिर पड़ी
(उपवाक्य)
रमेश की बहन शीला (संज्ञा पदबंध) तेज़ी से चलती बस (क्रिया विशेषण पदबंध) गिर पड़ी (क्रिया पदबंध) | पदबंध |
पदबंध (Phrase)
कई पदों के योग से बने वाक्यांशो को, जो एक ही पद का काम करता है, ‘पदबंध’ कहते हैं। पदबंध को ‘वाक्यांश’ भी कहते हैं। जैसे—
1. सबसे तेज़ दौड़ने वाला छात्र जीत गया ।
2. यह लड़की अत्यंत सुशील और परिश्रमी है।
3. नदी बहती चली जा रही है।
4. नदी कल-कल करती हुई बह रही थी ।
उपर्युक्त वाक्यों में रंगीन छपे शब्द पदबंध हैं। पहले वाक्य के ‘सबसे तेज़ दौड़ने वाला छात्र’ में पाँच पद हैं, किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात् संज्ञा का कार्य कर रहे हैं। दूसरे वाक्य के ‘अत्यंत सुशील और परिश्रमी’ में भी चार पद हैं, किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात् विशेषण का कार्य कर रहे हैं। तीसरे वाक्य के ‘बहती चली जा रही है’ में पाँच पद हैं, किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात् क्रिया का काम कर रहे हैं। चौथे वाक्य के ‘कल-कल करती हुई’ में तीन पद हैं, किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात् क्रिया विशेषण का काम कर रहे हैं।
पद के प्रकार
पदबंध चार प्रकार के होते हैं-
संज्ञा पदबंध, विशेषण पदबंध, क्रिया पदबंध और क्रिया विशेषण पदबंध |
1. संज्ञा पदबंध पदबंध का अंतिम अथवा शीर्ष शब्द यदि संज्ञा हो और अन्य सभी पद उसी पर आश्रित हो तो वह ‘संज्ञा पदबंध’ कहलाता है। जैसे-
(a) चार ताकतवर मज़दूर इस भारी चीज़ को उठा पाए ।
(b) राम ने लंका के राजा रावण को मार गिराया ।
(c) अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे।
(d) आसमान में उड़ता गुब्बारा फट गया। उपर्युक्त वाक्यों में रंगीन छपे शब्द ‘संज्ञा पदबंध’ हैं।
2. विशेषण पदबंध : पदबंध का शीर्ष अथवा अंतिम शब्द यदि विशेषण हो और अन्य सभी पद उसी पर आश्रित हों तो वह ‘विशेषण पदबंध’ कहलाता है । जैसे-
(a) तेज़ चलने वाली गाड़ियाँ प्रायः देर से पहुँचती हैं।
(b) उस घर के कोने में बैठा हुआ आदमी जासूस है ।
(c) उसका घोड़ा अत्यंत सुंदर, फुरतीला और आज्ञाकारी है।
(d) बरगद और पीपल की घनी छाँव से हमें बहुत सुख मिला । उपर्युक्त वाक्यों में रंगीन छपे शब्द ‘विशेषण पदबंध’ हैं ।
3. क्रिया पदबंध : क्रिया पदबंध में मुख्य क्रिया पहले आती है। उसके बाद अन्य क्रियाएँ मिलकर एक समग्र इकाई बनाती
हैं। यही ‘क्रिया पदबंध’ है । जैसे—
(a) वह बाज़ार की ओर आया होगा।
(b) मुझे मोहन छत से दिखाई दे रहा है।
(c) सुरेश नदी में डूब गया।
(d) अब दरवाज़ा खोला जा सकता है।
उपर्युक्त वाक्यों में रंगीन छपे शब्द ‘क्रिया पदबंध’ हैं।
4. क्रिया विशेषण पदबंध : यह पदबंध मूलतः क्रिया का
विशेषण रूप होने के कारण प्रायः क्रिया से पहले आता है। इसमें क्रियाविशेषण प्रायः शीर्ष स्थान पर होता है, अन्य पद उस पर आश्रित होते हैं। जैसे-
(a) मैंने रमा की आधी रात तक प्रतीक्षा की।
(b) उसने साँप को पीट-पीटकर मारा।
(c) छात्र मोहन की शिकायत दबी ज़बान से कर रहे थे ।
(d) कुछ लोग सोते-सोते चलते हैं। उपर्युक्त वाक्यों में रंगीन छपे शब्द ‘क्रिया विशेषण पदबंध’ हैं ।
विराम-चिह्न (Punctuation)
‘विराम’ का अर्थ है- ‘विश्राम’ या ‘ठहराव’ । वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है । लिखित भाषा में इस विश्राम या ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं । इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।
भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता है, उन्हें विराम-चिह्न कहते हैं। यदि विराम-चिह्न का प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे-
1. रोको मत जाने दो ।
2. रोको, मत जाने दो।
3. रोको मत, जाने दो।
उपर्युक्त उदाहरणों में पहले वाक्य में अर्थ स्पष्ट नहीं होता, जबकि दूसरे और तीसरे वाक्य में अर्थ तो स्पष्ट हो जाता है लेकिन एक-दूसरे का उलटा अर्थ मिलता है जबकि तीनों वाक्यों में वही शब्द हैं। दूसरे वाक्य में ‘रोको’ के बाद अल्पविराम लगाने से रोकने के लिए कहा गया है जबकि तीसरे वाक्य में ‘रोको मत’ के बाद अल्पविराम लगाने से किसी को न रोक कर जाने के लिए कहा गया है। इस प्रकार विराम-चिह्न लगाने से दूसरे और तीसरे वाक्य को पढ़ने में तथा अर्थ स्पष्ट करने में जितनी सुविधा होती है उतनी पहले वाक्य में नहीं होती ।
अतएव विराम-चिह्नों के विषय में पूरा ज्ञान होना आवश्यक है। हिंदी में प्रचलित प्रमुख विराम-चिह्न निम्नलिखित हैं—
S.n. | Name | चिन्ह |
---|---|---|
1 | पूर्ण विराम या विराम | (।) |
2 | अर्धविराम | (;) |
3 | अल्पविराम | (,) |
4 | प्रश्नवाचक चिन्ह | (?) |
5 | विस्मयादिबोधक चिन्ह | (!) |
6 | उद्धरण चिह्न | (” “) (‘ ‘) |
7 | योजक | (-) |
8 | निर्देशक (डैश) | (—) |
9 | कोष्ठक | [()] |
10 | हंसपद (त्रुटिबोधक) | (^) |
11 | रेखांकन (अधोरेखन) | (_) |
12 | लाघव चिह्न | (०) |
13 | लोप-चिह्न | (…) |
नोट : फुल स्टाप (.) को छोड़कर शेष विराम-चिह्न वही लिए गए हैं, जो अंग्रेज़ी में प्रचलित हैं। पूर्ण विराम के लिए बिन्दु (.) की जगह खड़ी पाई (।) को अपनाया गया है।1. पूर्ण विराम (Full Stop) (।) : हिन्दी में पूर्ण विराम चिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। यह चिह्न हिन्दी का प्राचीनतम विराम चिह्न है ।(a) इस चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक और विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है; जैसे-राम स्कूल से आ रहा है। वह उसकी सौंदर्यता पर मुग्ध हो गया । वह छत से गिर गया।(b) दोहा, श्लोक, चौपाई आदि की पहली पंक्ति के अंत में एक पूर्ण विराम (।) तथा दूसरी पंक्ति के अंत में दो पूर्ण विराम ( । ।) लगाने की प्रथा है; जैसे—रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।पानी गए न ऊबरे मोती, मानुस, चून ॥(c) कभी-कभी किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांशों के अंत में पूर्ण विराम का प्रयोग होता है; जैसे-1. वह रामसिंह आ रहा है। गठा हुआ बदन । मस्ती भरी चाल । हँसता चेहरा। दोस्तों के लिए मोम । शत्रुओं के लिए काल ।2. संध्या का समय । आकाश में लाली । वृक्षों पर पक्षियों का कलरव । सुनसान पथ ।2. अर्द्धविराम (Semicolon) (;) : जहाँ अपूर्ण विराम की अपेक्षा कम देर और अल्पविराम की अपेक्षा अधिक देर तक रुकना हो, वहाँ अर्द्धविराम का प्रयोग किया जाता है।
(a) आम तौर पर अर्द्धविराम दो उपवाक्यों को जोड़ता है जो थोड़े से असंबद्ध होते हैं एवं जिन्हें ‘और’ से नहीं जोड़ा जा सकता है; जैसे-
फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल माना गया है; किंतु श्रीनगर में और ही किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते हैं।
(b) दो या दो से अधिक उपाधियों के बीच अर्द्धविराम का प्रयोग होता है; जैसे-एम. ए., बी. एड. एम. ए., पी.एच. डी. एम. एस-सी. डी. एस सी ।
3. अल्पविराम (Comma)(): जहाँ पर अर्द्धविराम की तुलना में कम देर रुकना हो तो अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। इस चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है-
(a) एक ही प्रकार के कई शब्दों का प्रयोग होने पर प्रत्येक शब्द के बाद अल्पविराम लगाया जाता है, लेकिन अंतिम शब्द के पहले ‘और’ का प्रयोग होता है; जैसे—रघु अपनी संपत्ति, भूमि, प्रतिष्ठा और मान मर्यादा सब खो बैठा।
(b) ‘हाँ’, ‘नहीं’, ‘अतः’, ‘वस्तुतः’, ‘बस’, ‘अच्छा’ जैसे शब्दों से आरंभ होने वाले वाक्यों में इन शब्दों के बाद; जैसे-
हाँ, लिख सकता हूँ।
नहीं, यह काम नहीं हो सकता।
अतः, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
वस्तुतः, वह पागल है ।
बस, हो गया, रहने भी दो ।
अच्छा, अब मैं चलता हूँ।
(c) वाक्यांश या उपवाक्य को अलग करने के लिए; जैसे- विज्ञान का पाठ्यक्रम बदल जाने से, मैं समझता हूँ, परीक्षा परिणाम प्रभावित होगा।
(d) कभी-कभी संबोधन सूचक शब्द के बाद अल्पविराम भी लगाया जाता है; जैसे- रवि, तुम इधर आओ।
(e) शब्द युग्मों में अलगाव दिखाने के लिए; जैसे- पाप और
पुण्य, सच और झूठ, कल और आज ।
(i) पत्र में संबोधन के बाद जैसे— पूज्य पिताजी, मान्यवर, महोदय आदि। ध्यान रहे कि पत्र के अंत में भवदीय, आज्ञाकारी आदि के बाद अल्पविराम नहीं लगता ।
(g) क्रियाविशेषण वाक्यांशों के बाद भी अल्पविराम आता है। जैसे – महात्मा बुद्ध ने, मायावी जगत के दुःख को देख कर, तप प्रारंभ किया।
(h) किंतु, परंतु, क्योंकि, इसलिए आदि समुच्च्यबोधक शब्दों
से पूर्व भी अल्पविराम लगाया जाता है; जैसे-
आज मैं बहुत थका हूँ, इसलिए विश्राम करना चाहता हूँ। मैंने बहुत परिश्रम किया. परंतु फल कुछ नहीं मिला।
(i) तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्, संवत् के पहले अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है; जैसे- 2 अक्तूबर, सन् 1869 ई. को गाँधीजी का जन्म हुआ ।
(i) उद्धरण से पूर्व ‘कि’ के बदले में अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है; जैसे- नेता जी ने कहा, “दिल्ली चलो।
(‘कि’ लगने पर नेताजी ने कहा कि “दिल्ली चलो” ।)
(k) अंकों को लिखते समय भी अल्पविराम का प्रयोग किया
जाता है; जैसे- 5,6, 7, 8, 9, 10, 15, 20, 60, 70, 100 आदि ।
(।) एक ही शब्द या वाक्यांश की पुनरावृत्ति होने पर अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है; जैसे— भागो, भागो, आग लग गई है।
(m) जहाँ ‘यह’, ‘वह’, ‘अब’, ‘तब’, ‘तो’, ‘या’ आदि शब्द लुप्त हो; जैसे-
वह कब लौटेगा, कह नहीं सकता। (‘यह ‘ लुप्त है)
मैं जो कहता हूँ, ध्यान लगाकर सुनो तुम जानो। (‘वह’ लुप्त है)
कहना था सो कह दिया, जब जाना ही है, चले जाओ। (‘अब’ लुप्त है) (‘तब’ लुप्त है)
यदि तुम कल आओ, मेरी किताब लेते आओगे। (‘तो’ लुप्त है)
4. प्रश्नवाचक चिह्न (Mark of Interrogation) (?) : प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है; जैसे- तुम कहाँ जा रहे हो ? वहाँ क्या रखा है ?
इस चिह्न का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है; जैसे—क्या कहा, वह निष्ठावान (?) है।
5. विस्मयादिबोधक चिह्न (Mark of Exclamation) (!) : (a)
विस्मय, आश्चर्य, हर्ष, घृणा आदि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
वाह ! आप यहाँ कैसे पधारे ? हाय ! बेचारा व्यर्थ में मारा गया।
(b) संबोधनसूचक शब्द के बाद; जैसे— मित्रो! अभी मैं जो कहने जा रहा हूँ। साथियो ! आज देश के लिए कुछ करने का समय आ गया है ।
(c) अतिशयता को प्रकट करने के लिए कभी-कभी दो- तीन विस्मयादिबोधक चिह्नों का प्रयोग किया जाता जैसे-अरे, वह मर गया ! शोक!! महाशोक !!! 6.उद्धरण चिह्न (Inverted Commas) (” “) : किसी और के वाक्य या शब्दों को ज्यों-का-त्यों रखने में इसका (दूहरे उद्धरण चिह्न) प्रयोग किया जाता है; जैसे-तुलसीदास ने कहा- “रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाय पर वचन न जाई ||”
(”): पुस्तक, समाचारपत्र आदि का नाम, लेखक का उपनाम, वाक्य में किसी शब्द पर जोर देने के लिए तथा उद्धरण के भीतर उद्धरण देने के लिए इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग करते हैं,। जैसे-
तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ एक अनुपम कृति है। लेखक ने कहा, “मैं जानता हूँ कि पुस्तक की छपाई संतोषप्रद नहीं है, पर कल ही प्रकाशक महोदय कह रहे थे, ‘ऐसा प्रेस के लोगों ने जान-बूझकर किया है’।”
7. योजक चिह्न (Hyphen) (-): इस चिह्न का प्रयोग
निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है-
(a) सामासिक पदों या पुनरुक्त और युग्म शब्दों के मध्य किया जाता है; जैसे-
जय-पराजय, लाभ-हानि, दो-दो, राष्ट्र-भक्ति ।
(b) तुलनावाचक ‘सा’, ‘सी’, ‘से’, के पहले; जैसे- चाँद-सा चेहरा, फूल-सी मुसकान ।
(c) एक अर्थवाले सहचर शब्दों के बीच; जैसे- कपड़ा-लत्ता, धन-दौलत, मान-मर्यादा, रुपया-पैसा।
(d) सार्थक-निरर्थक शब्द-युग्मों के बीच; जैसे- अनाप-शनाप, उलटा-पुलटा, काम-वाम, खाना-वाना।
8. निर्देशक चिह्न (Dash) (—): निर्देशक चिह्न (—) योजक चिह्न (-) से थोड़ा बड़ा होता है । इस चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है-
(a) संवादों को लिखने के लिए— रमेश- तुम कहाँ रहते हो ? मोहन मैं नेहरू नगर में रहता हूँ ।
(b) कहना, लिखना, बोलना, बताना, शब्दों के बाद; जैसे- गाँधी जी ने कहा- हिंसा मत करो । महेश ने लिखा-सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् ।
(c) किसी प्रकार की सूची के पहले, जैसे- सफल होने वाले छात्रों के नाम निम्नलिखित हैं- राजीव, रमेश, मोहन, श्याम, मुकेश ।
जहाँ किसी भी विचार को विभक्त कर बीच में उदाहरण दिए जाते हैं, वहाँ दोनों ओर इसका प्रयोग किया जाता है, जैसे- श्याम बाज़ार से कुछ सामान-दाल सब्जी-खरीदने गया ।
9. कोष्ठक (Brackets) [ () ] : कोष्ठक के भीतर मुख्यतः उस सामग्री को रखते हैं जो मुख्य वाक्य का अंग होते हुए भी पृथक की जा सकती है; जैसे-
क्रिया के भेदों (सकर्मक और अकर्मक) के उदाहरण दीजिए ।
(a) किसी कठिन शब्द को स्पष्ट करने के लिए; जैसे-
आप की सामर्थ्य (शक्ति) को मैं जानता हूँ। (b) नाटक में अभिनय निर्देशों को कोष्ठक में रखा जाता है; जैसे-
मेघनाद (कुछ आगे बढ़ कर ) – लक्ष्मण यदि सामर्थ्य है तो सामने आओ ।
(c) विषय, विभाग सूचक अंकों अथवा अक्षरों को प्रकट करने के लिए; जैसे—
संज्ञा के तीन भेद हैं- (1) रूढ़ (2) यौगिक और (3) योगरूढ़ ।
10. हंसपद/त्रुटिबोधक (Caret) (^) : जब किसी वाक्य अथवा वाक्यांश में कोई शब्द अथवा अक्षर लिखने मे छूट जाता तो छूटे हुए वाक्य के नीचे हंसपद चिह्न का प्रयोग कर छूटे हुए शब्द को ऊपर लिख देते हैं।
जन्मसिद्ध
जैसे-स्वतंत्रता हमारा ^ अधिकार है।
11. रेखांकन/ अधोरेखन चिह्न (Underline) (_) : वाक्य में महत्त्वपूर्ण शब्द, पद, वाक्य रेखांकित कर दिया जाता है; जैसे- गोदान उपन्यास प्रेमचंद द्वारा लिखित सर्वश्रेष्ठ कृति है ।
12. लाघव चिह्न (Sign of Abbreviation) (०) : संक्षिप्त रूप लिखने के लिए लाघव चिह्न का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
दे. = देखिए / देखें
ई. = ईसवी
ई.पू. = ईसा पूर्व
कृ. पृ. उ. = कृपया पृष्ठ उलटिए
प. न. नि.= पटना नगर निगम
13. लोप चिह्न (Mark of Omission) (…) : जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिन्ह का प्रयोग किया जाता है, जैसे-
गाँधीजी ने कहा, “परीक्षा की घड़ी आ गई है। या मरेंगे” । हम करेंगे
गौण विराम-चिह्न
Name | Sign | uses |
---|---|---|
अपूर्ण विराम उपविराम (Colon) | : | आगे लिखी जा रही बात की ओर ध्यान आकृष्ट करने में, किसी व्यक्ति, वस्तु आदि का परिचय देने में, पुस्तक या लेख के शीर्षक में, जन्म व मृत्यु- तिथि में, साक्षात्कथन में आदि । |
पुनरुक्तिसूचक / आवर्तक | ” “ | शब्द या वाक्य की पुनरुक्ति बचाने में। |
विवरण चिह्न (Colon-dash) | :— | वाक्यांश के निर्देश में, किसी वस्तु के सविस्तार वर्णन में आदि। (चिह्न का प्रयोग अब बहुत कम होता है) |
तारक चिह्न (Star / Asterisk Mark) | ★ | पाद टिप्पणी के लिए। |
योग चिह्न ( Plus Mark) | + | दो या अधिक शब्दों को जोड़ने में । (संधि को दिखाने के लिए शब्द की व्युत्पत्ति बताने में) |
तुल्यतासूचक चिह्न (Equivalent Mark) | = | समानता सूचित करने के लिए। (संधि एवं समास को दिखाने के लिए) |
तिर्यक रेखा (Oblique/Slash) | / | ‘या’ या ‘अथवा’ के अर्थ में/अलग करने के अर्थ में, तारीख दर्ज करने में, कविता की पंक्तियों को अलग-अलग करने में । |
गोली (Bullet) | • | मुख्य बातों या तथ्यों को सारांश रूप देने में। |
समाप्तिसूचक चिह्न (Finish Mark) | -0-, ••• ★★★ | लेख या पुस्तक की समाप्ति का बोध कराने में। |
Mujhe ummid hai ki apko arth ke aadhar par vakya bhed, rachna ke aadhar par vakya bhed ya arth ki drishti se vakya bhed ke baare mein aap jaan gay honge.
राम पढ़ता है मैं कौन सा वाक्य है?
सरल वाक्य
संतोष से बढ़कर सुख नहीं मैं कौन सा वाक्य है
संयुक्त वाक्य
यदि सही दिशा में परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल हो जाओगे मैं कौन सा वाक्य है
मिश्रित वाक्य
राजनीति अब एक व्यवसाय बनती जा रही है जो गुंडागिरी के बल पर चलती है मैं कौन सा वाक्य है
मिश्र वाक्य
- अनेक शब्दों के लिए एक शब्द | ek shabd ke anek shabd
- देवनागरी लिपि किसे कहते हैं | devnagri lipi kya hai
- समास किसे कहते हैं | Samas Kise Kahate Hain
- हिंदी भाषा का महत्व| Hindi Bhasha