मध्य प्रदेश के पुरातात्विक स्थल (Madhy Pradesh ke Puraataatvik Sthal) : इस पोस्ट में हम जानेंगे मध्य प्रदेश के पुरातात्विक स्थल के बारे में
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Madhy Pradesh ke Puraataatvik Sthal
कायथा– काली सिंध नदी के किनारे का यह स्थान ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता के प्रमाण प्राप्ति का मुख्य स्थल है यह सिंधु सभ्यता का भाग है।
यहां पर 1965-66 में विक्रम विश्वविद्यालय की ओर से वीएस वाकणकर के नेतृत्व में उत्खनन कराया गया जिसमें यहां से ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता से लेकर शुंग, कुषाण गुप्त व गुप्तोत्तर युगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
इस उत्खनन मैं मृदभांड तांबे का से आदि के उपकरण से सुसज्जित अलंकरण प्राप्त हुए और मिट्टी से निर्मित मानव व पशुओं की आकृतियां एवं घर के अवशेष तथा लोहे के सामग्री आदि इस उत्खनन से प्राप्त हुए।
आदमगढ़ – यहां से पाषाण कालीन सभ्यता की सबसे प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
आजमगढ़ की गुफाएं होशंगाबाद जिले में नर्मदा नदी के दक्षिण तट के पहाड़ियों पर स्थित है आजमगढ़ की विश्व विख्यात चित्रित सेल कृत गुफाएं है।
वर्ष 1960-61 में भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा उत्खनन कराया गया यहां से मध्य पाषाण युगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं यहां पर पूर्व पाषाण युगीन औजार हस्तकुठार, विदारिणी, अंडील, चक्रिक उपकरण ,खुर्ची आदि प्राप्त हुए हैं।
यहां से उपमहाद्वीप क्षेत्र में पशुपालन के प्राचीनतम प्रमाण मिले हैं।
Madhy Pradesh ke Puraataatvik Sthal
नागदा – उज्जैन के निकट चंबल नदी के किनारे बसे इस स्थल से ताम्र पाषाण युग इन सभ्यता के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
नागदा टोली – खरगोन के महेश्वर में नागदा टोली स्थान से ताम्र पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
इसका उत्खनन डेक्कन कॉलेज रिसर्च इंस्टीट्यूट पुणे के संचालक डॉ हसमुख धीरजलाल साकलिया के निर्देशन में वर्ष 1952-53 में करवाया गया था।
इस उत्खनन में गेहूं चना मटर मसूर के अवशेष एवं तांबे का से का अवशेष और विदेशियों के आक्रमण के प्रमाण एवं उत्कृष्ट चमकीले लाल मृदभांड आदि के अवशेष प्राप्त हुए।
इस इस रूप में प्रयोग में लाई गई कुछ ईटों पर तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व की ब्राम्ही लिपि के अक्षरों की छपाई पाई गई है।
ऐरण– सागर जिले के एरण से ताम्र पाषाण कालीन सभ्यता के साथ ही भारत में सती प्रथा के साथ भी प्राप्त हुए हैं।
एरन बीना और बेतवा नदी के संगम के पास स्थित है यहां के आसपास के लोगों का यह मानना है कि यहां पर एराका नामक घास पाया जाता था जिस कारण इसे एरण नाम दे दिया गया यहां के सिक्कों पर एरिकन और नाग का चित्र मिलता है।
यहां पर उत्खनन से ताम्राष्मकाल के पूरा अवशेष प्राप्त हुए हैं जो यह साबित करते हैं कि आज से 4000 वर्ष पूर्व यहां ताम्राष्मकाल काल के लोग रहा करते थे
इस जगह पर वर्ष 1960-61 में सागर विश्वविद्यालय की ओर से बाजपेई के निर्देशन में उत्खनन कार्य शुरू किया गया
यहां से ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता से लेकर मध्ययुगीन सभ्यता तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं मौर्य काल के बाद के मिले सिक्कों से पता चलता है कि इस समय यहां पर एक गणराज्य स्थापित हो गया था एरण से गुप्त काल शासकों के अभिलेख प्राप्त हुए हैं गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के एक अभिलेख में एरन को समुद्रगुप्त का भोग नगर बताया गया है।
510 ईसवी के भानु गुप्त के एक अभिलेख से सती प्रथा के प्रचलन का उल्लेख मिलता है अभिलेख भारत में सती प्रथा का प्राचीनतम साक्ष्य है यहां से मिले अभिलेखों से हूण शासक तोरमाण हूण के आक्रमण की जानकारी मिलती है
जटकरा (खजुराहो) – यहां भारतीय पुरातत्व द्वारा सर्वेक्षण के दौरान की गई खुदाई में विशाल मंदिर प्राप्त होने के प्रमाण मिले हैं।
खलघाट (धार)- यहां भगवान बुद्ध के अनुयायियों से संबंधित 2000 वर्ष पुरानी वस्तुएं प्राप्त हुई है।
खलघाट (धार)- यहां से ताम्र कालीन सभ्यता के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
पीत नगर (खरगोन)– यहां से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व के प्राचीन बौद्ध कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
निन्नौर गांव (सीहोर)- यहां की गई खुदाई में गुप्तकालीन वस्तु कला एवं नगर व्यवस्था के आओ के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
जूना एरवास (उज्जैन)- यहां की गई खुदाई में लगभग 3000 वर्ष पूर्व की प्राचीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
तादौल (उज्जैन)- यहां की गई खुदाई में लगभग 2000 वर्ष पुराना मंदिर भी प्राप्त हुआ है।
खेड़ी नामा (होशंगाबाद)- यहां की खुदाई में साढे तीन हजार वर्ष प्राचीन ताम्र युगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
भीम बेटिका (रायसेन)- यहां पांडव कालीन गुफाएं प्राप्त हुई हैं।
त्योंथर (रीवा)- यहां की गई खुदाई में बौद्ध कालीन अवशेष तथा ईसा पूर्व तीसरी एवं चौथी सदी में नगरीय सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।
आवरा
मंदसौर जिले में स्थित आगरा से ताम्र पाषाण काल से लेकर गुप्त काल तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
कसरावद
पश्चिम निमाड़ जिले में कसरावद नगर के दक्षिण में नर्मदा नदी के तट पर स्थित दूत वर्डी नामक पीला है 1936 में श्री वी आर करंदीकर के निर्देशन में यहां पर उत्खनन कराया गया इस उत्खनन से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
पवाया
पवाया को पहले पद्मावती नाम से जाना जाता था यह ग्वालियर से 68 किलोमीटर दूर हिंद और पार्वती नदियों के संगम पर स्थित है यह स्थल नागराजाओ की तीन राजधानियों में से एक था,
यहां पर 1924-25 से 1940 तक श्री गुरुदेव के निर्देशन में उत्खनन कराया गया जहां पर शिवन्दी के शासनकाल का उत्कृन लेख गुप्तकालीन विष्णु मंदिर खंडित ताड़ स्तंभ और अनेक मिट्टी की मूर्तियां पाई गई।
त्रिपुरी
त्रिपुरी जबलपुर के पास भेड़ाघाट रोड पर तेवार गांव में मिला एक पुरातत्विक स्थल है यह जबलपुर नगर की सबसे पुरानी बस्ती है यहां के उत्खनन में ताम्र उपकरण और अन्य कई अवशेष प्राप्त हुए हैं
ऐसा कहा जाता है कि यहां पर 3 असुरों तारकासुर माया सुर और बिंदु माली की राजधानी थी जिन्हें त्रिपुरारी ने परास्त किया था
महेश्वर
महेश्वर खरगोन जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित पुरातात्विक तथा पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थल है प्राचीन समय में इसका नाम माहिष्मती था और यह अहिल्याबाई होल्कर की राजधानी थी।
वर्ष 1952-53 उत्खनन डॉक्टर एचडी शकलिया के निर्देशन में हुआ
ग्यारसपुर
ग्यारसपुर ग्वालियर जिले में स्थित एक पुरातात्विक स्थल है इसका उत्खनन वर्ष 1933 में कराया गया इस उत्खनन से मंदिर गर्भ ग्रह गयासुद्दीन तुगलक के समय के तांबे के सिक्के खंडित प्रतिमाएं लघु लेख 10 वीं शताब्दी का एक बड़ा लेख और आभूषण आदि प्राप्त हुए
भीमबेटका
भीमबेटका पुरातात्विक स्थलों में से एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है जो कि मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है
इसका उत्खनन वी एस वाकड़ ने कराया यहां से पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति की गुफाओं का सेलाश्रय प्राप्त हुई है
यहां की गुफाओं की दीवारों में आदिमानव ने अपनी सृजनात्मक कलाओं की अभिव्यक्ति की है
इनकी गुफाओं के दीवारों में शिकार, नृत्य, संगीत व पारंपरिक जीवन के चित्र दिखाई देते हैं
विदिशा
प्राचीन प्राचीन काल मैं विदिशा को बेस नगर के नाम से जाना जाता था यह भी मध्यप्रदेश के महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है यह बेतवा नदी के किनारे स्थित है और अभी वर्तमान समय में इसे विदिशा नाम से जाना जाता है
इस पुरातात्विक स्थल का उत्खनन वर्ष 1913 14 मैं केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा सीडीआर भंडारकर के निर्देशन में कराया गया इसका मुख्य उद्देश्य होलियोडोरस के खंड स्तंभ में उल्लेखित वसुदेव मंदिर के भग्नावशेष की खोज करना था।
बेसनगर उत्खनन में होलियोडोरस स्तंभ के निकट 68 सिक्के मिले जिनमें अधिकांश आहत सिक्के हैं और मौर्यकालीन नहर के अवशेष मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप मिट्टी के बने मनुष्य व पशु पक्षियों की आकृतियां एवं खिलौने संघ व हाथी दांत से बनी चूड़ियां लोहे तांबे व कांस्य की बनी घरेलू उपयोग की वस्तुएं एवं आभूषण प्राप्त हुए।
भरहुत
भरहुत ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है जो कि सतना जिले में स्थित है बौद्ध स्तूप के लिए विख्यात है स्तूप की खोज कनिंघम द्वारा की गई इस स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक द्वारा दूसरी शताब्दी ईस्वी में कराया गया था जिसका विस्तार शुंग काल में हुआ इस स्तूप में महात्मा बुद्ध की जातक कथाओं का उल्लेख मिलता है।
इन्हें भी पढ़ें
- बुरहानपुर जिले मैं कौन कौन सी तहसील हैं- Burhanpur Jile ki Tehsil
- बैतूल जिले मैं कौन-कौन सी तहसील हैं- Betul Jile ki Tehsil
- छतरपुर जिले मैं कौन-कौन सी तहसील- Chhatarpur Jile ki Tehsil
पुरातात्विक स्थल कायथा का उत्खनन किसके निर्देशन में हुआ?
उत्तर – वी एस वाकणकर (1965-66)
पुरातात्विक स्थल बेसनगर का उत्खनन किसके निर्देशन में हुआ?
उत्तर- सीडीआर भंडारकर (1913-14)
पुरातात्विक स्थल आवरा का उत्खनन किसके निर्देशन में हुआ
उत्तर- डॉक्टर एच व्ही त्रिवेदी (1960-61)
पुरातात्विक स्थल नावदा टोली का उत्खनन किसके निर्देशन में हुआ?
उत्तर- डॉ हसमुख धीरजलाल शाकालिया (1952-53)
पुरातात्विक स्थल महेश्वर का उत्खनन किसके निर्देशन में हुआ?
उत्तर – डॉक्टर एच डी साकलिया (1952-53)
पुरातात्विक स्थल पवाया का उत्खनन किसके निर्देशन में हुआ
उत्तर श्री गर्दे (1924-25 से 1940)
पुरातात्विक स्थल ग्यारसपुर का उत्खनन कब हुआ
उत्तर- 1933
पुरातात्विक स्थल आजमगढ़ का उत्खनन किसके निर्देशन में हुआ?
उत्तर – आर वी जोशी तथा एमडी खरे (1960-61)
पुरातात्विक स्थल त्रिपुरी कहां स्थित है?
उत्तर- जबलपुर के पास भेड़ाघाट रोड पर तेवार गांव में त्रिपुरी स्थित है
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